Two-Day Policy-Oriented Workshop for Religious Leaders on Vaccination, Climate Change & Environmental Sustainability at Parmarth Niketan

परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से जीरो से पांच वर्ष तक के बच्चों को नियमित टीकाकरण का संदेश हर घर, परिवार, समुदाय और समाज के सभी वर्गो तक धर्मगुरूओं के उद्बोधनों और संदेशों के माध्यम से पहुंचाने हेतु आयोजित इस दो दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत में नियमित टीकाकरण हेतु जनसमुदाय को जागृत करने के लिये नियमित टीकाकरण का संदेश प्रत्येक मंच से प्रसारित करना होगा। साथ ही हमारे पर्वो, त्यौहरों, मेलों, उत्सवों के माध्मय से भी इस संदेश को प्रसारित करना जरूरी है क्योंकि बात भारत के भविष्य की है। हमारे बच्चे स्वस्थ होंगे तो भारत का भविष्य सुरक्षित होगा।

साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर स्वच्छता, स्वास्थ्य और समृद्धि लाने के लिये प्रत्येक परिवार व प्रत्येक बच्चे तक स्वच्छ जल,स्वच्छता, नियमित टीकाकरण की पहुंच जरूरी है। बिना इन बेसिक सुविधाओं के हम वैश्विक शान्ति और समृद्ध समाज की कल्पना नहीं कर सकते।

गोस्वामी सुशील जी ने कहा कि अक्टूबर व नवम्बर में दिल्ली सहित पूरे भारत में रामलीला का आयोजन किया जाता है, अतः नियमित टीकाकरण हेतु इन मंचों, स्कूलों, काॅलेजों और धमार्थ चिकित्सालयों से प्रसारित करने पर विलक्षण परिणाम प्राप्त किये जा सकते है।

श्री विवेक मुनि जी ने कहा कि धार्मिक आयोजनों के अवसर पर माता-पिता को अपने बच्चों का नियमित टीकाकरण करने हेतु प्रेरित कर हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

तमारा अबू शाम, (एसबीसी विशेषज्ञ, यूनिसेफ) ने कहा कि भारत का टीकाकरण कार्यक्रम दुनिया में सबसे बड़ा है, जिसमें लगभग 26.7 मिलियन शिशुओं और 30 मिलियन गर्भवती महिलाओं का वार्षिक समूह है। लगातार प्रगति के बावजूद, नियमित रूप से बच्चों को बचपन में टीकाकरण कवरेज में वृद्धि धीमी रही है। अनुमानतः 26.3 प्रतिशत बच्चे 2019 में जीवन के पहले वर्ष में सभी बुनियादी टीके प्राप्त करने में विफल रहे। उन्होंने कहा कि एक बच्चे को पूरी तरह से प्रतिरक्षित तब माना जाता है जब उसे जीवन के पहले वर्ष के भीतर राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार सभी आवश्यक टीके लगा दिये जाते हैं इसलिये यूनिसेफ व जीवा ने इस अद्भुत पहल की शुरूआत की जिसके माध्यम से बच्चों के नियमित टीकाकरण की आवाज़ धर्मगुरूओं और धार्मिक संगठनों के मंच से आये तो इसका प्रभाव बहुत गहरा और व्यापक होता है।

इस कार्यशाला के टीकाकरण कवरेज को सीमित करने वाले कारकों पर भी चर्चा हुई और यह निष्कर्ष निकला कि जो अलग-थलग आबादी है जिन तक पहुंचना मुश्किल है, टीकाकरण के विषय में कम जानकारी और गलत जानकारी वाली आबादी जो भ्रमवश टीकाकरण के दुष्प्रभावों से डरते हैं इसिलये वे टीकाकरण विरोधी संदेशों को भी प्रसारित करते है उन तक सकारात्मक संदेशों को प्रसारित करने की यह अद्भुत पहल है।

नियमित टीकाकरण बचपन की बीमारियों को रोकने के सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीकों में से एक है। इसके तहत बच्चे को एक विशिष्ट उम्र में टीका लगाया जाता है ताकि टीके के माध्यम से बचाव योग्य बीमारियों से बचाया जा सके।

राष्ट्रीय स्तर पर 9 बीमारियों के उन्मूलन हेतु टीकाकरण – डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, बचपन के तपेदिक का गंभीर रूप, हेपेटाइटिस बी तथा मेनिनजाइटिस एवं हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा प्रकार बी के कारण होने वाला निमोनिया की रोकथाम के लिये टीकाकरण अत्यंत आवश्यक है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की मिशन इंद्रधनुष योजना और राष्ट्रीय कोल्ड चेन प्रबंधन सूचना प्रणाली अत्यंत सही सशक्त और मजबूत है इसका लाभ प्रत्येक परिवार को उठाना चाहिये।

स्वामी चिदानंद सरस्वती जी, सह-संस्थापक, जीवा, साध्वी भगवती सरस्वती जी, अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव जीवा, गोस्वामी सुशील जी, भारतीय सर्व धर्म संसद, श्री विवेक मुनि जी, संस्थापक अध्यक्ष, आचार्य सुशील मुनि मिशन, शालिनी प्रसाद जी एसबीसी विशेषज्ञ, यूनिसेफ, तमारा अबू शाम जी, एसबीसी विशेषज्ञ, यूनिसेफ, श्री गोपाल बंसल जी, कार्यक्रम बजट, वित्त प्रबंधन विशेषज्ञ, यूनिसेफ, सुखपाल कौर मारवा जी, एसबीसी विशेषज्ञ, यूनिसेफ, भावना ठाकुर जी, सलाहकार, यूनिसेफ, डॉ. महेशकुमार के. सेंघानी जी, प्रोफेसर वीरायतन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, श्री श्यामजी भगत जी, गंगा नन्दिनी जी, वन्दना शर्मा जी और अन्य अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने किया सहभाग। कार्यशाला के समापन अवसर पर सभी विशिष्ट अतिथियों को रूद्राक्ष का पौधा और अवलोकन हेतु वसंधरा टूलकिट प्रदान किया गया ताकि वे अपनी कथाओं, उद्बोधनों और संदेशों के माध्यम से परम्परागत जीवन शैली, मिशन लाइफ के संदेशों को प्रसारित कर जनसमुदाय को इस कार्यक्रम से जोड़े तो प्रकृति भी बचेगी, संस्कृति भी बचेगी और संतति भी बचेगी।