Tribal Artists Present Glimpses of Maa Shabari Ramlila in Parmarth Ganga Aarti

परमार्थ निकेतन गंगा तट पर 20 से 24 अक्टूबर को आयोजित की जा रही माँ शबरी रामलीला की कुछ झलकियाँ आदिवासी व जनजाति कलाकारों द्वारा प्रस्तुत की गयी। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, अपर मुख्य सचिव मध्यप्रदेश, श्री विनोद कुमार जी, डेयर टू ओवरकम के वैश्विक अध्यक्ष डॉ. ब्रायन ग्रिम उनकी बेटी मलिसा, अन्य विशिष्ट अतिथियों और कलाकारों ने दीप प्रज्वलित कर आगामी माँ शबरी रामलीला के सफल आयोजन हेतु प्रार्थना की।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि माँ शबरी रामलीला के माध्यम से पूरी दुनिया को यह संदेश देना चाहते हैं कि समाज में ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा और भेदभाव जैसी बाते हो रही हैं, इस प्रकार के प्रदूषण फैलाये जा रहे हैं इस सब बातों के प्रति जागरूक किया जायेगा। सनातन धर्म मेें सब का सम्मान है, सभी समान है, किसी के प्रति भी ऊँच-नीच का भाव नहीं है। सभी जानते हैं कि भगवान राम स्वयं शबरी के दर पर गये, केवट से मिले यही संदेश हमें आगे आने वाली पीढ़ियों को देना है।

वर्तमान समय में पूरा विश्व पर्यावरण प्रदूषण का सामना कर रहा है ऐसे में हमें प्रकृति के पूजक जो सदियों से जैव विविधता को आबाद और संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं उन्हें अलग-थलग नहीं छोड़ना है क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा हेतु उनका सहज और विविध ज्ञान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

आदिवासी व जनजातियों की अद्वितीय संस्कृतियों, परम्पराओं और अभ्यासों से जैव विविधता काफी हद तक संरक्षित हैं। जो प्रकृति के लिये जीवन जीते हैं ऐसे किसी को पीछे नहीं छोड़ना है।

स्वामी जी ने कहा कि जनजातियाँ वह मानव समुदाय हैं जो एक अलग निश्चित भू-भाग में निवास करते हैं और जिनकी एक अलग संस्कृति, अलग रीति-रिवाज, अलग भाषा है, वे प्रकृति पूजक हैं परन्तु वे हम से अलग नहीं है, वे भी हमारे समाज का अभिन्न अंग है। सभी हमारे अपने है इसलिये जातियों की खाईयाँ और नफरत की दीवारे खड़ी न करें। वर्तमान समय में जातियों के आधार पर नहीं बल्कि गरीबी के आधार पर समाज का विकास करें और जरूमंद समाज को गले लगाये। आपसी नफरत की दीवारों को तोड़े, दरारों को भरे तभी एक समृद्ध समाज का निर्माण किया जा सकता है।

स्वामी जी ने कहा कि अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति की पहचान है और इसी के मूल में निश्चित रूप से भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थित जनजातियाँ हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में रहते हुए अपनी संस्कृति के जरिये भारतीय संस्कृति को एक अनोखी पहचान देती हैं। 20 से 24 अक्टूबर को परमार्थ निकेतन गंगा तट पर आयोजित माँ शबरी रामलीला हमें यही संदेश देगी कि हम सब एक हैं, माँ धरती और माँ भारती की संतान हैं और यही हमारी पहचान हैं।

20 से 24 अक्टूबर को सैस फाउंडेशन, दिल्ली द्वारा परमार्थ निकेतन गंगा तट पर आयोजित माँ शबरी रामलीला में डा शक्ति बख्शी जी, विश्व मोहन जी और उनकी पूरी टीम अद्भुत भूमिका निभा रहे हैं।