परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज अनंत चतुदर्शी एवं गणेश विसर्जन के अवसर पर श्रीमद् भागवत कथा के दिव्य मंच से प्रकृति, संस्कृति और संतति को संरक्षित रखने का संदेश दिया।
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि आज अनन्त चतुदर्शी के अवसर पर अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा हेतु अनन्त सूत्र बांधा जाता है। जब पाण्डव धृत क्रीड़ा में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया। अनन्त चतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए।
शास्त्रों में इस व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, अर्थात हमारे व्रत और पर्व हमें नदियों और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देते है। आप सभी परम सौभाग्यशाली है कि परमार्थ निकेतन में गंगा के पावन तट पर श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा का श्रवण कर रहे हैं। यहां से नदियों के संरक्षण का संदेश लेकर जायें।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पूरे देश में विगत 14 दिनों से श्री गणेश उत्सव की धूमधाम थी अब विसर्जन की बारी है। हम श्री गणेश जी का विसर्जन करें लेकिन नये सर्जन के साथ। शास्त्रों में तो यह मर्यादा है कि गणेश जी की जो मूर्ति बनायें वह गोबर की हो और वह मात्र एक अंगूठे के बराबर होनी चाहिये और हम यज्ञ, पूजा और अनुष्ठान के अवसर पर श्रीगणेश व गौरी जी की गोबर की मूर्ति बनाते भी हैं परन्तु वर्तमान समय में जो प्लास्टर आॅफ पेरिस और सिंथेटिक की प्रतिमायें हैं
उनका कोई शास्त्रीय विधान के अनुसार नहीं है। पूजन करने के पश्चात उन मूर्तियों को नदियों में, तालाबों में विसर्जन किया जाता है। उससे प्रदूषण तो बढ़ता ही है साथ में पूजित प्रतिमाओं की दूर्गति भी देखने को मिलती है।
स्वामी जी ने कहा कि जिस प्रकार पहले पूजन के लिये गोबर के श्री गणेश बनाने की ही परम्परा थी वर्तमान में भी हम गोबर के, माटी के या आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से गणेश जी बनाकर पूजन करें और विसर्जन के समय धरती में गढ़ढा करें और उसमें उन्हें स्थापित कर दें इससे परम्परा भी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा। हमें सोचना होगा कि क्या ये परम्परा स्वस्थ परम्परा है, अब आवश्यकता है कि हमारी पूजा, प्रार्थना और उत्सव सार्थक हो, सफल हो और प्रेरक हो, यह एक सृजन की यात्रा हो, हम विर्सजन से सर्जन की ओर बढ़े।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रीमद् भागवत कथा के मंच से शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस के अवसर पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि शहीद भगतसिंह देश भ्ािक्त के आदर्श को लेकर जिये और कुर्बान हो गए।
मात्र 23 वर्ष की उम्र में वे शहीद हो गए। भगत सिंह वह शख्सियत थे; वह व्यक्तित्व थे जो सिर्फ और सिर्फ भगत सिंह ही हो सकते थे। उन्होंने देश के युवाओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि भगत सिंह को समझना है तो उनकी देशभक्ति को समझना होगा। आपकी युवावस्था में, तरुणाई में भी अपने पास भगतसिंह जैसे कुछ सपने होने चाहिए। राष्ट्र के उत्थान का जज्बा होना चाहिए। आज जब हम भगत सिंह को याद कर रहे हैं तो उनके व्यक्तिगत बलिदान के साथ-साथ उनके सिद्धांतों और विचारों को भी याद करें।
कथा के यजमान श्री द्वारिकाप्रसाद जी, श्री राजेश कुमार जी और पूरा परिवार इस दिव्य कथा को भावविभोर होकर श्रवण कर रहे हैं। श्री द्वारिकाप्रसाद जी ने कहा कि पूज्य स्वामी जी के मार्गदर्शन एवं सान्निध्य में डॉ श्याम सुन्दर पाराशर जी के श्रीमुख से गंगा जी के पावन तट पर कथा श्रवण करने का आनन्द अद्भुत है। यहां आकर लग रहा है मानों हम वास्तव में स्वर्ग में हैं। कथा की दिव्य ज्ञान गंगा के साथ गंगा आरती, योग, ध्यान और सत्संग का अद्भुत आनन्द प्राप्त हो रहा है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथा डॉ श्याम सुन्दर पाराशर जी और कथा यजमान श्री द्वारिका प्रसाद जी को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।