परमार्थ निकेतन में उत्तराखंड के माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त) पधारे।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और माननीय राज्यपाल श्री गुरमीत सिंह जी ने विभिन्न समसामयिक विषयों पर चर्चा की ।
परमार्थ निकेतन में डॉ निशंक जी का रचना संसार अन्तर्राष्ट्रीय दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन माननीय राज्यपाल उत्तराखंड श्री गुरमीत सिंह जी, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, माननीय पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री निशंक जी, डा अरूण जी, महात्मा गांधी हिन्दी विश्व विद्यालय वर्धा के कुलपति डा रजनीश कुमार शुक्ल जी, डा रश्मि खुराना जी, डा राजेश नैथानी जी, डा अश्विनी जी और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर किया।
उत्तराखंड के माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन का यह दिव्य क्षेत्र और यह क्षण ऐतिहासिक क्षण है। भारत की सभ्यता, संस्कृति और साहित्य अद्भुत है। यहां आज एक वल्र्ड रिकार्ड बनाने जा रहा है क्योंकि यहां पर निशंक जी की 108 रचनाओं का उत्सव है। इतनी पुस्तकों की रचना करना अद्भुत है, अपने आप में कीर्तिमान है।
भारत की सभ्यता और साहित्य को लिखना अनिर्वाय है क्योंकि हम साहित्य के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को दिशा प्रदान कर सकते हैं।
माननीय राज्यपाल जी ने कहा कि दो दिन के चिंतन-मंथन से अद्भुत अमृत निकल कर आयेगा। जीवन जो है वह सोच, विचार, और धारणा का समन्वय ही तो है। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन आकर जीवन की खोज समाप्त हो जाती है। जीवन का परम अर्थ प्राप्त होता है।
माननीय राज्यपाल जी ने कहा कि शब्द में ही पूरा संसार है। भारत की सभ्यता और ब्रह्मण्ड की उत्त्पति ओम से हुई। ऊँ में पूरे ब्रह्मण्ड के स्वर समाहित है। उन्होंने कहा कि स्वामी जी से मैं जब भी मिलता हूँ मेरे जीवन की बैटरी चार्ज हो जाती है। ऐसे लगता है कि स्वामी जी ने पूरी मानवता की जिम्मेदारी ली है। भारत की महान परम्परा हमारे ऋषियों की सोच, विचार और धारणा ही तो है। उन्होंने कहा कि डा निशंक जी ने भारत की संस्कृति और सभ्यता को गहराई से जाना और उसे शब्दों में उतारा है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि डॉ निशंक जी का व्यक्तित्व हिमालय की तरह विशाल है और उनकी रचनायें भी सृजनात्मकता और संवेदनशीलता से युक्त है। उनका साहित्य ज्ञानवर्धक और प्रेरणाप्रद है।
स्वामी जी ने कहा कि देश की शान, स्वाभिमान और सम्मान का दीप सभी को अपने हृदय में प्रज्वलित करना होगा। अपने भावों में देश भक्ति के दीपों से सजाने और विश्व तक पहुंचाने का संदेश दिया। उन्होंने युवाओं को संदेश देते हुये कहा कि अपने विचारों में सकारात्मकता बनाये रखे।
स्वामी जी ने कहा कि जीवन कलेक्शन का नाम नहीं बल्कि कनेक्शन का नाम है। हमें केवल बाहर नहीं बल्कि भीतर भी शासन करना होगा। निशंक जी एक नई सोच के साथ बढ़ रहे हैं। हिमालय की धरती पर हिमालय की विरासत को बचाये रखना जरूरी है। स्वामी जी ने सभी को पर्यावरण संरक्षण का संकल्प कराया।
महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री रजनीश कुमार शुक्ल जी ने कहा कि भारत के ज्ञान, विद्या तथा शक्ति की अत्यंत प्रतिष्ठा है क्योंकि भारतवासी परमार्थ हेतु जीवन जीना जानते है। उन्होंने कहा कि निशंक सजृनधर्मी हैं, सजृन और संवर्द्धन के प्रतीक हैं।
उन्होंने बताया की पूज्य स्वामी की के आशीर्वाद से प्रतिवर्ष परमार्थ निकेतन में अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव का आयोजन किया जायेगा।
श्री राजेश नैथानी जी ने कहा कि जी -20 वसुधैव कुटुम्बकम् के सूत्र वाक्य पर आयोजित किया जा रहा है, इसी भाव को लेकर लेखक गांव का सजृन भी किया जा रहा है जहां पर लेखक आकर अपनी संवेदनाओं को सहेज पायेंगे।
डा अश्विनी जी ने कहा कि निशंक जी का रचना संसार ओज से भरा गुलदस्ता है, इसमें राष्ट्रभक्ति भी समाहित है।
रश्मि खुराना जी ने कहा कि हम भारतीय है और हम कहीं भी रहे भारतीय ही रहेेगे। उन्होंने निशंक जी की शिक्षा नीतियों की सराहना की।
डा निशंक जी ने इस समारोह में सहभाग करने वाले सभी अतिथियों, अनेक विश्व विद्यालय के कुलपति, प्रोफेसर्स, शोधार्थियों और बच्चों का अभिनन्दन किया।
डाॅ निशंक जी ने 108 कृतियों की रचना की हैं तथा उनकी पुस्तकों का तमिल, तेलुगु, उड़िया, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी, उर्दू, फारसी, संस्कृत, डोगरी सहित अनेक भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, नेपाली, डच सहित अनेक अभारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है । अब तक कई विद्वानों द्वारा निशंक जी के साहित्य पर लेखन कार्य किया जा चुका है। ज्ञातव्य है कि कई शोधार्थी डॉ निशंक जी के साहित्य पर शोध कर चुके हैं या कर रहे हैं। अपनी उत्कृष्ट साहित्य साधना के लिए डॉ निशंक को 15 से ज्यादा देशों में सम्मानित किया जा चुका है।
इस अवसर पर अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों, शिक्षाविदों, प्रोफेसर्स एवं समीक्षकों ने सहभाग किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।