ऋषिकेश, 11 फरवरी। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, साध्वी भगवती सरस्वती जी और केंद्रीय कैबिनेट आयुष मंत्री श्री सर्बानन्द सोनोवाल जी की शिष्टाचार बैठक दिल्ली में हुई। इस अवसर पर भारत में योग, ध्यान, आयुर्वेद, प्राकृतिक जीवन शैली विकसित कर उसे एक कल्याण युक्त राष्ट्र के रूप में विकसित करने हेतु विशेष चर्चा हुई।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत को स्वस्थ और आरोग्य से समृद्ध राष्ट्र के रूप में विकसित करने के लिये हमें इकोसिस्टम को मजबूत बनाना होगा ताकि सभी के स्वास्थ्य कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सके।
स्वामी जी ने कहा कि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति एक स्वस्थ समाज एवं विकसित व समृद्ध राष्ट्र का प्रतीक होता है। ऐसे में शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सजगता जरूरी है। इस दिशा में माननीय यशस्वी, तपस्वी और ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार द्वारा किए गए प्रयास सराहनीय हैं लेकिन इस मार्ग में कई चुनौतियाँ आज भी मौजूद हैं जिससे निपटने के लिये हमें योग, ध्यान, प्राकृतिक जीवनशैली को अपनाने और प्रदूषकों को कम करने के लिये जनसमुदाय को जागृत करना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि योग मुख्यतः एक जीवन पद्धति है, जिसे महर्षि पतंजलि ने क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया था और माननीय योगी जी ने योग को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। योग के आठ अंगों के अभ्यास से व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर में सुधार होता है। शरीर और मस्तिष्क में ऑक्सीजन युक्त रक्त का संचार सामान्य गति से होता है जिससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा जीवनशैली भी संयमित होती है, मन को शांति एवं पवित्रता प्राप्त होती है। यौगिक अभ्यास से बुद्धि तथा स्मरण शक्ति बढती है तथा इससे थकान एवं तनावों को कम करने में भी मदद मिलती है। ध्यान एक दूसरा व्यायाम है, जो मानसिक संवेगों में स्थिरता लाता है तथा शरीर के मर्मस्थलों के कार्यो को सामान्य करता है, साथ ही तंत्रिका तंत्र को भी नियंमित करता है। स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में स्वास्थ्य की उन्नति तथा चिकित्सा के उद्देश्यों की दृष्टिगत करते हुये आयुष मंत्रालय उत्कृष्ट कार्य कर रहा है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश की संस्कृति और राष्ट्रभक्ति हेतु समर्पित कर दिया। पंडित दीनदयाल जी विकास की पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को पंक्ति में खड़े पहले व्यक्ति के समकक्ष लाना चाहते थे। उन्होंने हमें एकात्म मानववाद दिया जिसका उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है।
यह प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपभोग का समर्थन करता है जिससे कि उन संसाधनों की पुनः पूर्ति की जा सके। वर्तमान समय में पूरे विश्व को एक ऐसे विकास मॉडल की आवश्यकता है जो एकीकृत और संधारणीय हो। एकात्म मानववाद ऐसा ही एक दर्शन है जो अपनी प्रकृति में एकीकृत एवं संधारणीय है।