The group of Nihang saints led by Jathedar Nihang Baba Ranjit Singh Ji Phoola, visited Parmarth Niketan. They took blessings from Pujya Swami Chidanand Saraswatiji – Muniji and participated in the world-renowned Parmarth Ganga Aarti. Pujya Swamiji emphasized the significance of nature’s elements and urged the protection of these natural resources and the adherence to the teachings of Guru Granth Sahib for a righteous and pure life. He also stressed of promoting divine virtues and green pilgrimages. He also called for a heart purified of discrimination and devoted to love, service, and remembrance of the Divine, encouraging pilgrims to plant trees as a tribute to their spiritual journeys.
जत्थेदार शिरोमणि पंथ अकाली तरना दल के प्रमुख जत्थेदार निहंग संगठन के प्रमुख बाबा रणजीत सिंह जी फूला के दल से निहंग संत व संगत परमार्थ निकेतन पहुंचे।
संतों व संगत ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर उनके पावन सान्निध्य में विश्व विख्यात परमार्थ गंगा आरती में सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने ’पवन गुरू पानी पिता, माता धरत महत’ को दोहराते हुये कहा कि इस श्लोक में गुरु नानक देव जी ने कहा है कि वायु, हमारा गुरु है – उस वायु में ‘प्राण’ है जो जीवनी शक्ति का वाहक है, जो हमें सांस रूपी उपहार प्रदान करता है। सांस ही है जो जीवन को बनाए रखती है। जिस प्रकार माँ, प्रेम से अपने सभी बच्चों का ध्यान रखती है हमारी पृथ्वी माता भी अपने सभी बच्चों का भरण-पोषण करती है। जिस प्रकार पिता परिवार में समन्वय बनाये रखते हैं उसी प्रकार जल भी पूरी पृथ्वी पर समन्वय व शीतलता बनाये रखता है। अब समय आ गया कि हम इन प्रकृति प्रदत संसाधनों की सुरक्षा करने हेतु आगे आयें तथा गुरू की पवित्र वाणी के अनुसार अपने जीवन को पवित्र बनाये।
स्वामी जी ने कहा कि गुरू ग्रंथ के सम्मान का यही अर्थ है कि गुरूग्रंथ साहिब की वाणी के अनुसार हम अपने जीवन को बनाये। नाम जपो, किरत करो और वंड चक्खो अर्थात प्रभु का नाम बाहर, भीतर हमेशा चलता रहें, कथायें हो, कीर्तन हो, नाम स्मरण हो ये सब बातें मन को शुद्ध करने के लिये है ताकि मन का मैल मिटे तथा जीवन में सत्य, प्रेम और करूणा का विकास हो। कीरत करो अर्थात जीवन में पुरूषार्थ करो और वंड चखो अर्थात मिलबांट कर खाओ, यह सब मूल्यवान गुण है, यह जब जीवन में आते हैं तभी जीवन सार्थक और पवित्र बनता है। स्वामी जी ने कहा कि संगत इन दिव्य गुणों का पालन कर रही है तभी तो लंगर चलते आ रहे हैं। साथ ही एक और कार्य करना है-हमारी यात्रा, पर्यटन व तीर्थाटन को हरित बनाना है।
स्वामी जी ने गुरू नानक देव जी के संदेशों को याद करते हुये कहा कि उन्होंने ’’अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे, एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे’’। उन्होंने सामजिक ढांचे को एकता के सूत्र में बाँधने के लिये तथा ईश्वर सबका परमात्मा हैं ,पिता हैं और हम सभी एक ही पिता की संतान है ऐसे अनेक दिव्य सूत्र दिये। उनकी सबसे पहली शिक्षा थी कि कैसे हृदय की गांठ खुलें, इससे जात-पात, भेदभाव, ऊँच-नीच के भाव समाप्त हो जाते हैं। ‘‘कहो नानक जिन हुकम पछाता, प्रभु साहब का तिन भेद जाता’’ अर्थात प्रभु का भेद प्राप्त हो जाने के बाद सारे भेद मिट जाते है। ’’सब घट ब्रह्म निवासा’’, सब बराबर हैं, कोई छोटा नहीं, कोई बड़ा नहीं, बस एक ही भाव रह जाता है सब से प्रेम करो, सब की सेवा करो, हृदय को पवित्र रखो और सदा ईश्वर का स्मरण करते रहो। यात्रा के समय गपशप नहीं प्रभु नाम का गुणगान करते रहे और यात्रा की याद में पौधों का रोपण करे। यही प्रभु का आदेश व समय की पूकार भी है।