Renowned Storyteller Acharya Sri Pundrik Goswamiji Visits Parmarth

Renowned storyteller Acharya Sri Pundrik Goswami Ji visited Parmarth Niketan and expressed his happiness after meeting Pujya Swamiji. He remarked about the confluence of the Ganga and Yamuna rivers, symbolizing spiritual unity. Pujya Swamiji reflecting on the rich spiritual history of Rishikesh, he mentioned the presence of revered saints like Pujya Swami Vivekananda, Pujya Swami Ramtirth, and others. He advocated for expanding the tradition of Vrindavan’s evening prayers to other holy cities like Rishikesh, Varanasi, and Haridwar, fostering a beautiful sight for pilgrims. Acknowledging the sanctity of the Ganga’s banks, he emphasized the profound spiritual impact of the river and its role in awakening consciousness.

परमार्थ निकेतन में आज गंगा सप्तमी के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन गंगा तट पर गंगा जी का पूजन, अर्चन और अभिषेक किया।

परमार्थ निकेतन में प्रसिद्ध कथाकार आचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी पधारे। उन्होंने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भंेट कर प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि आज गंगा व यमुना का मिलन हुआ। स्वामी जी ने हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट किया।

आज गंगा सप्तमी के पावन अवसर पर गंगा जी को नमन करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि हमने ऐसी धरती पर जन्म लिया है और हमें ऐसी दिव्य माटी को वंदन करने का सौभाग्य मिला है जहां पर 365 दिन और 765 से भी अधिक त्यौहार मनाये जाते हैं और आज वह दिन है जब माँ गंगा ने वैकुण्ठ से श्री हरि विष्णु के श्री चरणों से भगवान शिव की जटाओं में माँ गंगा जी का अवतरण हुआ। गंगा जी एक नदी ही नहीं बल्कि जीवंत व जागृत माँ है, वह भारत की आत्मा व भारतीयों का प्राणतत्व है। गंगा जी केवल हमारी आस्था ही नहीं बल्कि आत्मा भी हैं। आज उनके अवतरण दिवस पर उनकी निरंतरता, जीवंतता व उदारता को नमन।

स्वामी जी ने कहा कि माँ गंगा की महिमा अपरम्पार है। गंगाजी ने न केवल राजा सगर के पुत्रों का उद्वार किया बल्कि तब से लेकर आज तक जो भी माँ गंगा के तट पर आया उसे गंगा माँ शान्ति व सद्गति प्रदान करती आ रही हंै। भारत की सनातन, आध्यात्मिक व धार्मिक यात्रा माँ गंगा के बिना अधूरी है क्योंकि वह तो 2525 किलोमीटर का जीता-जागता, चलता-फिरता मन्दिर है। माँ गंगा, हमें मुक्ति भी देती है और भक्ति भी देती है; शक्ति भी देती है और शान्ति भी देती है। मां गंगा न केवल भारतीयों या हिंदुओं के लिए है, बल्कि वह सभी के लिए है। माँ गंगा, कभी भी किसी के भी साथ भेद नहीं करती। इस जीवन व जीविका दायिनी माँ को आज हमारे समर्पण व संकल्प की जरूरत है ताकि 2525 किलोमीटर का यह जीवंत व जागृत मन्दिर स्वच्छ, प्रदूषण मुक्त व पर्यावरण से युक्त बना रहे।

आचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी का गंगा जी के पावन तट पर अभिनन्दन करते हुये स्वामी जी ने कहा कि गंगा के तट पर यमुना जी का आगमन हुआ है। इस युवा संत ने भक्ति की अद्भुत धारा मर्यादा और गंभीरता के साथ प्रवाहित की है। स्वामी जी ने कहा कि 70 के दशक में माँ गंगा जी के पावन तट पर अनेक प्यारे-प्यारे वीतराग संत हुये और इसी धरती पर स्वामी विवेकानन्द जी, स्वामी रामतीर्थ जी, स्वामी रामसुखदास जी, स्वामी शिवानन्द जी, महर्षि महेश योगी जी, पूज्य भाई श्री, पूज्य सेठ जी, पूज्य स्वामी शुकदेवानन्द जी महाराज से लेकर स्वामी असंगानन्द जी महाराज जी आदि तक की जो महापुरूषों की परम्परा है वह बड़ी ही अद्भुत है। वास्तव में यह संयम की भूमि है, संगम की भूमि है और सत्संग की भूमि है। माँ गंगा के पावन तट ऋषिकेश का यह पूरा क्षेत्र बड़ा ही अद्भुत क्षेत्र है। यहां जो भी आता है वह भीतर की यात्रा के लिये, अध्यात्म के लिये और खुद को तलाशने और खुद को तराशने के लिये आता है।

स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम मिलकर वृन्दावन धाम की आरती भी ऋषिकेश, वाराणसी और हरिद्धार की तर्ज पर हो और प्रसिद्ध हो ताकि वहां पर आने वाले यात्री बाकें बिहारी जी का दर्शन भी कर शाम को आरती का दर्शन करें व वृन्दावन धाम में निवास करे यह एक अद्भुत नजारा होगा। दोनों पूज्य संतों ने इस पर योजना बनाने का संकल्प लिया।

आचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी ने कहा कि बहुत समय के बाद मेरी मार्निंग गुड मार्निंग हुई थी क्योंकि ऋषिकेश के सचल स्वरूप का दिल्ली के एयरपोर्ट पर अद्भुत संगम हुआ मानों गंगा व यमुना का संगम हो रहा हो। तीर्थ अचल होता हंै और उसी तीर्थ पर रहने वाले संत उस तीर्थ का सचल स्वरूप होते हैं।

मेरे लिये तो स्वामी जी सचल ऋषिकेश हैं। आज गंगा सप्तमी है और गंगा जी की धारा भगवान शिव की जटाओं से होकर गंगासागर तक जाती है परन्तु गंगा जी के तट पर भी एक आध्यात्मिक घारा है। गंगा जी के मध्य में गंगा जी की जलधारा है और गंगा के तट पर गंगा की आध्यात्मिक धारा है, वह भी गौमुख से लेकर गंगा सागर तट गंगा के हर तट पर बहती है। जो जल घारा गंगा जी की प्रवाहित होती है उसका संगम प्रयाग है जो आध्यात्मिक धारा गंगा जी के तट पर प्रवाहित होती है उसका संगम परमार्थ निकेतन है।

स्वामी जी प्रतिदिन गंगा जी के पावन तट से इस आध्यात्मिक धारा के माध्यम से अनेक चेतनायें चाहे वह ज्ञान, योग, यज्ञ, तीर्थ या ध्यान हो को जागृत करते हैं। वे इस तट से आध्यात्मिक सामाजिक, लौकिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, मानवीय, प्राकृतिक और मानसिक तभी तापों को हरने का चितंन व समाधान इस तट से स्वामी जी करते हैं। स्वामी जी ने एक जीवन में जितना सोच लिया और कर लिया वह कोई साधारण व्यक्ति एक जीवन में नही कर सकता है।

उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन बहुत बड़ा स्थान हैं। संसार में दो तरह के लोग होते हैं एक वह व्यक्ति होता है जो स्थान से बड़ा होता है और एक वह व्यक्ति होता है जिससे स्थान बड़ा हो जाता है। स्वामी जी केे आने से परमार्थ निकेतन फिजिकली दिखने लगा और आज यह संस्था विश्व प्रसिद्ध संस्था बन गयी है।

जहां जाओं वही परमार्थ का नाम है। जहां जाओं वही योग, गुरूकुल, आरती इन सब की चर्चा होेती है और इसका श्रेय हमारे पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी को जाता है। यह विचार में था परन्तु आज परमार्थ का जो फिजिकल स्वरूप है वह आरती के माध्यम से व बड़े-बड़े प्रोजेक्ट के माध्यम से पूरी दुनिया में दिखने लगा है। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्य सबसे पहले संवाद से शुरू होता है, संवाद से विचारों में आता है और विचारों से एक्शन में आता है स्वामी जी उसके साक्षात स्वरूप है। कोई भी व्यक्ति ऋषिकेश आयें और वह परमार्थ निकेेतन गंगा आरती में न आये तो उसका तीर्थ सेवन अधूरा है।

यमुना जी के पावन तट से आये श्री प्रभु जय कृष्ण प्रभु जी को रूद्राक्ष का पौधा माँ गंगा के आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया।