कर्नाटक की धरती से श्वास गुरू स्वामी वचनानन्द जी और अन्य पूज्य संत परमार्थ निकेतन पधारे। पूज्य संतों ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर परमार्थ गंगा आरती में सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत में बहने वाली पवित्र नदी है और इसका उद्गम स्थान भी गंगामूला पहारी वराहा पर्वत के घाटों से हुआ है, ऐसी पवित्र नदियों के तटों पर आरती का क्रम आरम्भ कर इन्हें प्रदूषण ओर प्लास्टिक से मुक्त रख सकते हैं।
स्वामी जी ने बताया कि वर्ष 1997 मंे परमार्थ गंगा तट पर गंगा आरती का क्रम आरम्भ किया था, अब यह गंगा आरती केवल भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के पर्यटन और तीर्थाटन के मानचित्र पर उत्कृष्ट स्थान रखती है। साथ इस प्लेटफार्म के माध्यम से हम न केवल भारत बल्कि विश्व के अनेक देशों तक गंगा आरती का संदेश प्रतिदिन पहुंचाते हैं, अगर तुगंभद्रा नदी के घाटों और तटों पर आरती शुरू हो जाये तो उस पूरे क्षेत्र में विलक्षण परिवर्तन होगा।
स्वामी जी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र को उन्नत, समृद्ध, श्रेष्ठ और समुन्नत बनाने के लिये वहां की संस्कृति, सभ्यता एवं नदियों का अमूल्य योगदान होता है। इतिहास उठाकर देखे तो विश्व की लगभग सभी महान संस्कृतियों का उद्भव नदियों के तटों पर हुआ है इसलिये नदियों का संरक्षण अर्थात संस्कृति का संरक्षण।
नदियाँ धरती की रूधिरवाहिकायें हैं, नदियों की समृद्धि और अविरलता के कारण ही राष्ट्र समृद्धि के शिखर को छूआ सकते हैं इसलिये हमें नदियों के तटों पर आरती का क्रम शुरू करने हेतु जनसमुदाय को प्रेरित करना होगा ताकि नदियों में बढ़ता प्लास्टिक कचरा और यूज प्लास्टिक को कम किया जा सके।
हमें अपने नेचर, कल्चर और फ्यूचर, अर्थात् अपनी संस्कृति, प्रकृति और सन्तति को बचाने के लिये सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल बंद करना होगा। अपनी नदियों और अपनी धरती को स्वच्छ, हरित, सतत और सुरक्षित बनाने के लिये सभी धार्मिक संगठनों और धर्मगुरूओं को आगे आना होगा इसका, सबसे श्रेष्ठ माध्यम है प्रकृति और नदियों के प्रति आस्था को बनाये रखना और बढ़ाना।
स्वामी जी ने श्वास गुरू स्वामी वचनानन्द जी और अन्य पूज्य संतों को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया। सभी ने विश्व ग्लोब का अभिषेक कर जल के प्रति जन समुदाय को जागरूक व प्रेरित करने का संकल्प लिया।