परमार्थ निकेतन में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन

परमार्थ निकेतन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दिव्य मंच से परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथाकार सोशल रिस्पांसिबिलिटी का संदेश देते हुये कहा कि प्रकृति और पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने हेतु कथाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। हमारी कथायें जन जागरण का अद्भुत मंच है।

स्वामी जी ने कहा कि महाग्रंथ रामायण, श्रीमद्भागवत और शिवपुराण आदि ऐसे अनेक ग्रंथ है जो यह संदेश देते है कि हम प्रकृति के पूजक, संरक्षण और संवर्द्धक हैं। प्रकृति जीवन, जीविका और आरोग्य प्रदान करने वाली है। कथाकार जिस प्रकार श्रोताओं की आस्था व श्रद्धा प्रभु के प्रति जागृत करने का कार्य करते हैं उसी प्रकार शास्त्रों में व्याप्त प्रसंगों के माध्यम से प्रकृति के प्रति समर्पण को भी जागृत करना अत्यंत आवश्यक है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारे शास्त्रों में, पौराणिक कथाओं और परम्पराओं में पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के अनुकूल जीवन शैली का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। भगवान श्री राम को जब माता सीता को लेने हेतु लंका जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब सब ने कहा कि प्रभु आप एक बाण से समुद्र को सूखा सकते हैं और इस प्र्रकार हम जल्दी व आसानी से लंका तक पहुंच सकते हैं परन्तु प्रभु श्री राम ने कहा कि समुद्र के जल को सूखाने से सभी जलीय प्राणी व वनस्पति नष्ट हो जायेगी यह प्रकृति के विरूद्ध व्यवहार होगा इसलिये चाहे जितने दिन लगे हम समुद्र पार करने के लिये पुल बनायेंगे, यह था प्रकृति, पर्यावरण और प्राणियों के प्रति संवेदना और समर्पण।

रामचरित्र मानस में उल्लेख मिलता है कि लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा के लिये हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आये थे वह भी उस समय जब उनके प्राणों की रक्षा के लिये कोई और दूसरा उपाय नहीं था। इस प्रकार हमारे जीवन रक्षक पेड-पौधों और वनस्पतियों का महत्व व उनके संरक्षण का संदेश हमारे धर्मग्रंथ हमें देते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि कथाओं के माध्यम से हम इस प्रकार के मार्मिक प्रसंगों के वास्तविक अर्थ से श्रोताओं को अवगत कराकर प्रकृति और प्रकृति के अनुकूल जीवन शैली से जोड़ सकते हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथाकार चैतन्य मीरा जी और आयोजक परिवार को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट करते हुये सभी को पर्यावरण संरक्षण व प्रकृति के अनुकूल जीवन जीने का संकल्प कराया। स्वामी जी ने कहा कि हमारे भंडारे ऐसे हो जो हमारी धरती पर कचरे का भंडार न करें तथा हमारे मेले ऐसे हो जो हमारे तीर्थ स्थलों को मैला न करें तभी हमारी कथाओं की सार्थकता है।