परमार्थ निकेतन में विष्णुमहायज्ञ का आयोजन किया गया। पुराणों में पारंगत तेजस भाई पण्ड्या के नेतृत्व में गुजरात व उत्तराखंड के पंडितों ने विष्णु महायज्ञ सम्पन्न किया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में विष्णुमहायज्ञ की पूर्णाहुति हुई। इस अवसर पर स्वामी जी ने सभी भक्तों, यजमानों और आचार्यों को पर्यावरण संरक्षण का संकल्प कराते हुये कहा कि प्राचीन काल में यज्ञ पर्यावरण की शुद्धि व समृद्धि के लिये ही किये जाते थे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यज्ञ भारतीय वैदिक संस्कृति का स्तंभ है, वेदों में इसकी पवित्रता का वर्णन किया गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि असीमित ब्रह्मांड में प्रकृति सहित सभी प्राणी एक दिव्य शाश्वत यज्ञ से उत्पन्न हुए हैं। हमारे ऋषियों ने सार्वभौमिक जीवन के कुछ बुनियादी सिद्धांतों को समझा और उन्होंने जीवन के उन लौकिक सिद्धांतों को हमारे रोजमर्रा के जीवन में आत्मसात करने और लाने के लिए कुछ अनुष्ठानों को करने के प्रतीकात्मक साधनों में बदल दिया, इस प्रकार यज्ञ का जन्म हुआ।
स्वामी जी ने कहा कि यज्ञ मूल शब्द ‘यज’ से बना है जिसका अर्थ है ‘बलिदान करना’। यज्ञ मात्र एक कर्मकाण्ड नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। यज्ञ अनंत के साथ एक होने और एकता का एहसास करने का दिव्य माध्यम है। यज्ञ के माध्यम से ‘दान’ और त्याग के द्वारा जीवन, मन और आत्मा को शुद्ध करना, स्वार्थ से ऊपर उठकर प्रकृति और पर्यावरण के लिये कार्य करना ताकि सभी का कल्याण हो।
यज्ञ के माध्यम से हमें शिक्षा मिलती है कि इदम-न-मम् मेरे लिये नहीं है, लेकिन यह सर्वोच्च शक्ति के लिए है, क्योंकि सार्वभौमिक कल्याण ही यज्ञ का उद्देश्य है। श्रीमद्भगवद-गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, ‘यज्ञ की भावना से किया गया कार्य अनासक्त कर्म है। यह तुम्हें उच्चतम आदर्श तक ले जाएगा’। यज्ञ एक अभ्यास है जो हमारी चेतना के द्वार पर दस्तक देता है और हमें याद दिलाता है कि हमें क्या करना है और हमें कैसा आचरण करना है। जिस प्रकार सोना अग्नि में तपकर अपनी चमक पाता है, उसी प्रकार यज्ञ दर्शन को अपनाकर साधक उत्कृष्टता के शिखर पर चढ़कर दिव्यता की ओर बढ़ता है।
प्रकृति का निर्माण एक शाश्वत यज्ञ है, जीवन की प्रकृति एकात्मक समग्रता है। न केवल मनुष्य बल्कि यह संपूर्ण ग्रह एक पारिस्थितिकी तंत्र है जो व्यक्ति और ब्रह्मांड के बीच आदान-प्रदान द्वारा जीवित रहता है। यज्ञ की भावना पारिस्थितिक संतुलन और प्रकृति की सामंजस्यपूर्ण गतिविधियों में निहित है। अथर्ववेद और ऋग्वेद प्रकृति के चक्र के अस्तित्व और पोषण में यज्ञ को महत्वपूर्ण बताया गया है।
प्रकृति अपने अटूट प्राकृतिक यज्ञ चक्र के माध्यम से हमें ‘इदम-न-मम’ सिखाती है। समुद्र अपना पानी बादलों को देता है और बदले में वह बारिश के रूप में बरसता है। नदियाँ और झरने मिट्टी से निकलते हैं, और बारिश पृथ्वी को भिगोने और सभी प्राणियों, पेड़ों और पौधों की प्यास बुझाने के लिए लगातार बहती है। सूर्य, चंद्रमा, तारे और हवा अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के कल्याण के लिए हैं। शरीर का प्रत्येक अंग अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे शरीर की भलाई के लिए लगातार काम कर रहा है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड यज्ञ की भावना से चल रहा है इसलिए पर्यावरण और ग्रह के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के उचित रखरखाव के लिए सर्वव्यापी भावना, यज्ञ की भावना को अपने जीवन में लाने का सूत्र यहां से लेकर जायें।
विष्णु महायज्ञ पाँच दिवसीय समारोह में बड़ी श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ देश भर से आये भक्तों ने सहभाग किया। साथ ही परमार्थ निकेतन में होने वाली विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों में सहभाग कर पर्यावरण को समर्पित जीवन जीने का संकल्प लिया।