बाल दिवस के अवसर पर दिव्यांग बच्चों को कृत्रिम अंगों की सौगात
🇮🇳 बाल दिवस के अवसर पर भारत के प्यारे-प्यारे बच्चों को शुभकामनायें
परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश और महावीर सेवा सदन के संयुक्त तत्वाधान में पूरे भारत को दिव्यांग मुक्त बनाने हेतु शिविरों के आयोजन के लिये बनायी गयी विशेष कार्ययोजना
पीड़ा से प्रेरणा
स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश, 14 नवम्बर। बाल दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश और महावीर सेवा सदन के संयुक्त तत्वाधान में पूरे भारत को दिव्यांग मुक्त बनाने हेतु कोलकाता में विशेष बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी, सुश्री गंगा नन्दिनी त्रिपाठी, श्री जसवंतसिंह मेहता, श्री राधेश्याम अग्रवाल, श्री विनोद बागरोड़िया, श्री विजय सिंह चैरड़िया, श्री सोहन राज सिंघवी, श्री अग्रवाल, डा दुग्गल और अनेक संभ्रान्त सहयोगी संस्थाओं ने सहभाग कर आगे की कार्ययोजना तैयार की।
आज बाल दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने बच्चों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि हम जिस तरह की दुनिया बनाना चाहते हैं, हमें अपने बच्चों को उन्हीं संस्कारों से पोषित करना होगा। अगर हम एक स्वच्छ, स्वस्थ, शांतिपूर्ण, खुशहाल और बेहतर दुनिया चाहते हैं, तो हमें अपने बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा से पहले श्रेष्ठ संस्कार देना होगा। बच्चों का शारीरिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास भी जरूरी है। उनके लिए पाठ्यक्रम के साथ-साथ पर्यावरण और जीवन मूल्यों से उन्हें शिक्षित करना नितांत अवश्यक है।
स्वामी जी ने आज बाल दिवस के अवसर पर ‘दिव्यांगों’, ‘डिफरेंटली एबल्ड’, सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) बच्चों को कृत्रिम अंग व थेरेपी प्रदान करने हेतु पूरे भारत में निःशुल्क शिविरों के आयोजन के विषय में बनायी गयी कार्ययोजना की जानकारी प्रदान की। दिव्यांग मुक्त उत्तराखंड के पश्चात यह यात्रा विभिन्न राज्यों से होते हुये पूरे भारत में जायेगी ताकि दिव्यांग बच्चों को आत्मसम्मान, गरिमामय जीवन प्रदान करने के साथ ही उनके चेहरे की मुस्कान को लौटाने का एक अद्भुत प्रयास सभी के सहयोग से सफल किया जा सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने बताया कि एक दिन एक बच्ची मुझसे मिलने आयी जो कि दोनों हाथों और पैरों से विकलांग थी। उसने अपनी व्यथा सुनायी जिसे सुनकर मेरा हृदय दृवित हो गया। उस बच्ची की पीड़ा हमारे लिये प्रेरणा बनी, उसके पश्चात दिव्यांग मुक्त भारत की पहल की शुरूआत की।
स्वामी जी ने कहा कि दिव्यांग होना अभिशाप नहीं है अतः इसके कारण भावनात्मक हीनता से शिकार होने की जरूरत नहीं है क्योंकि हीनता की भावना विकास को बाधित करती है। दिव्यांग बच्चों की स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार तक पहुंच को बनाये रखने के लिये ‘दिव्यांग मुक्त भारत’ कार्यक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। दिव्यांग बच्चों में आत्मसम्मान के लिये उन्हें शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है।
स्वामी जी ने कहा कि अक्सर देखने को मिलता है कि सामाजिक स्तर पर दिव्यांग बच्चों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जो उनकी सामाजिक स्थिति में कमी को जन्म देता है, जिसके कारण वे मानसिक उत्पीड़न का शिकार हो जाते हैं, परिणामस्वरूप वे अपने अधिकारों का उपयोग भी नहीं कर पाते। कुछ मामलों में दिव्यांग बच्चे गरिमामय जीवन से दूर हो जाते हैं उन्हें गरिमामय जीवन प्रदान करने और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिये इस यात्रा का शुभारम्भ परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश और महावीर सेवा सदन कोलकात्ता के संयुक्त तत्वाधान में किया गया।
इस पावन कार्य को सभी के सहयोग से और बेहतर रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है जिसमें पूरा समाज, संस्थायें और सरकार सभी सहयोग के लिये आगे आ सकते हैं। यह विषय किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समाज का विषय है। अब इस यात्रा को राष्ट्र व्यापी बनाने के लिये हम प्रयासरत है। आईये मिलकर भारत को दिव्यांग मुक्त बनाये और दिव्यागों को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने में योगदान प्रदान करें।